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अध्यक्ष का संदेश
नास्ति विद्या समं
चक्षु
नास्ति सत्य समं
तपः|
नास्ति राग समं
दुःखं
नास्ति त्याग समं
सुखं||
"विद्या के समान नेत्र नहीं
है, सत्य के समान तपस्या नहीं है,
आसक्ति के समान दुःख नहीं है, त्याग के समान सुख नहीं
है।"
(शांतिपर्व, महाभारत)
शिक्षा एक रथ है जो राष्ट्र को समग्र विकास के पथ पर ले जाता है।
शिक्षा को समाज और विश्व की भलाई के लिए वांछनीय परिवर्तन लाने का एक
शक्तिशाली साधन माना जाता है। इसलिए, यह व्यक्तिगत और समाज के लिए
अपरिहार्य है।
राष्ट्रिय शिक्षा नीति '2020, जो अब समक्ष है, अब स्कूल से लेकर
उच्च शिक्षा तक सभी स्तरों पर सुधारों के लिए अंतर्दृष्टि प्रदान करती
है तथा निम्नलिखित प्रमुख पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित करती है -
- भारत केन्द्रित शिक्षा
- सतत
-
अभिगम्यता
-
समानता
-
उच्च गुणवत्ता
यह नीति पारदर्शिता, जवाबदेही, सामुदायिक भागीदारी, सामाजिक
एकीकरण, अनुसंधान और नवाचार, महत्वपूर्ण सोच और विश्लेषणात्मक क्षमता,
सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन सुधार और विकास की ओर भी केन्द्रित है।
इसकी समग्र दृष्टि स्कूल शिक्षा, शिक्षक तैयारी और उच्च शिक्षा के बीच
तालमेल विकसित करने की कोशिश करती है, जिसमें शासन और विनियमन में
पूर्ण सुधार होते हैं।
उपरोक्त सार के साथ NIOS निम्नलिखित पर प्रतिबद्ध है:
- शिक्षा- भारतीय ज्ञान परंपरा के आधार से लेकर समकालीन समय तक
- कौशल - शिक्षा के प्रारंभिक चरण में बुनियादी शिक्षा से लेकर
आधुनिक और व्यावसायिक कौशल तक
- आत्म निर्भरता - स्थानीय संसाधनों (स्वदेशी) और रोजगार के माध्यम
से आर्थिक सुधार।
- मूल्य आधारित शिक्षा- उपनिषद से मूल्य और यूनेस्को के मिलेनियम
2030 लक्ष्यों तक।
उपर्युक्त की कल्पना और लक्ष्य निर्धारित करते समय हमें इस क्षेत्र
में एन.आई.ओ.एस. के समकालीन अभ्यास पर भी एक नज़र डालनी चाहिए -:
- शिक्षा क्षेत्र में उद्यमिता
- सहयोगात्मक और सामुदायिक भागीदारी
- पारदर्शिता
- पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) और कॉर्पोरेट सोशल
रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर)
- संस्थागत स्वायत्तता और जवाबदेही।
- विनियमन, निगरानी और अनुपालन
- शिक्षा में सम्पूर्ण गुणवत्ता प्रबंधन (TQM)।
भारत एक ऐसा देश है जो विश्व स्तर पर युवा शक्ति में अग्रणी है।
इसलिए, छात्रों और शिक्षकों को राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य के लिए
कुशल, गुण उन्मुख और समर्पित होना चाहिए। जब तक हम आत्मनिर्भर और
प्रगतिशील नहीं होंगे, हम ज्ञान समाज का नेतृत्व नहीं कर सकते। आज
शिक्षा के सभी क्षेत्रों में गुणवत्ता विस्तार की मांग की जाती है जो
समाज की आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है। गुणवत्ता आधारित शिक्षा समाज
को मानवीय गरिमा और सामाजिक सह-अस्तित्व की ओर ले जा सकती है।
एक अच्छा शिक्षण अधिगम वातावरण बनाना और नए विचारों के माध्यम से
नवीनता लाना आज के शैक्षिक परिदृश्य का सबसे बड़ा लक्ष्य होना चाहिए।
पेशेवर नैतिकता के साथ आईसीटी का उपयोग निश्चित रूप से शिक्षा की
पारंपरिक प्रणाली को वैश्विक शिक्षा के अनुरूप एक अधिक अद्यतन और
उन्नत शिक्षा प्रणाली में बदलने की क्षमता रखता है। आज मुक्त एवं
दूरवर्ती शिक्षा का महत्व नए सिरे से परिभाषित हो रहा है। विद्यालयी
शिक्षा में हम विश्व के सबसे बड़े मुक्त शिक्षा प्रदान करने वाली
संस्था है। महान शिक्षक, प्रसिद्ध दार्शनिक और स्वतंत्र भारत के
द्वितीय राष्ट्रपति डॉ॰ एस॰ राधाकृष्णन पूरी दुनिया को एक स्कूल मानते
थे। उनका मानना था कि शिक्षा द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया
जा सकता है। अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना
चाहिए।
एनआईओएस गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के मिशन के माध्यम से
राष्ट्र निर्माण के सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध
हैं|
काले खलु समारब्धा फलं
बध्नन्ति नीतय:
सही समय पर बताई गई नीतियां
ही सफलता के रास्ते की ओर अग्रसर करती हैं।
(रघुवंशम 12/69)
(प्रो॰ सरोज
शर्मा)